Last modified on 10 जुलाई 2010, at 20:30

नैन भरि देखि लेहु यह जोरी / भारतेंदु हरिश्चंद्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:30, 10 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नैन भरि देखि लेहु यह जोरी।
मनमोहन सुंदर नटनागर, श्री वृषभानु-किसोरी॥
कहा कहौं छबि कहि नहिं आवै, वे साँवर यह गोरी।
ये नीलाम्बर सारी पहिनें, उनको पीत पिछौरी॥
एक रूप एक भेस एक बय, बरनि सकै कवि को री।
’हरीचंद’ दोऊ कुंजन ठाढ़े, हँसत करत चित-चोरी॥