रात गहराते ही
करौंदी की अरण्यानी
महामोद अपना
लुटाने लगी
आकुल उच्छवास से
आमोद यह
अरण्यानी लाँघ कर
पूरब, पच्छिम, उत्तर, दक्खिन तक
पसरा
आकाश से बोली अरण्यानी
देखो, जितने तुम्हारे पास तारे हैं
मेरे पास फूल हैं
मेरे इन फूलों की भाषा सुवास है
उन का कोलाहल सुगंधित है
वन्यमृग मेरे पास आते हैं
दीर्घ साँस लेते हैं
और
खड़े रहते हैं