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प्रस्तावना / भारतेंदु हरिश्चंद्र

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अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट और बनारस अखबार के देखने से ज्ञात हुआ कि बीबी उर्दू मारी गई और परम अहिंसानिष्ठ होकर भी राजा शिवप्रसाद ने यह हिंसा की-- हाय हाय ! बड़ा अंधेर हुआ मानो बीबी उर्दू अपने पति के साथ सती हो गई । यद्यपि हम देखते हैं कि अभी साढ़े तीन हाथ की ऊँटनी सी बीबी उर्दू पागुर करती जीती है, पर हमको उर्दू अखबारों की बात का पूरा विश्वास है । हमारी तो कहावत है-- "एक मियाँ साहब परदेस में सरिश्तेदारी पर नौकर थे । कुछ दिन पीछे घर का एक नौकर आया और कहा कि मियाँ साहब, आपकी जोरू राँड हो गई । मियाँ साहब ने सुनते ही सिर पीटा, रोए गाए, बिछौने से अलग बैठे, सोग माना, लोग भी मातम-पुरसी को आए । उनमें उनके चार पाँच मित्रों ने पूछा कि मियाँ साहब आप बुद्धिमान होके ऐसी बात मुँह से निकालते हैं, भला आपके जीते आपकी जोरू कैसे राँड होगी ? मियाँ साहब ने उत्तर दिया-- "भाई बात तो सच है, खुदा ने हमें भी अकिल दी है, मैं भी समझता हूँ कि मेरे जीते मेरी जोरू कैसे राँड होगी । पर नौकर पुराना है, झूठ कभी न बोलेगा ।" जो हो बहर हाल हमैं उर्दू का गम वाजिब है " तो हम भी यह स्यापे का प्रकर्ण यहाँ सुनाते हैं । हमारे पाठक लोगों को रुलाई न आवे तो हँसने की भी उन्हें सौगन्द है, क्यौंकि हाँसा-तमासा नहीं बीबी उर्दू तीन दिन की पट्ठी अभी जवान कट्ठी मरी है ।