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कर्मनाशा / संतोष मायामोहन

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मैं नाहना चाहती हूं
कर्मनाशा नदी में,
मैं धोना चाहती हूं
अपने सभी -
पाप और पुण्य -
मैं बनना चाहती हूं -
मनुष्य
और देखना चाहती हूं -
अपने भीतर की
मानवता ।

अनुवाद : नीरज दइया