Last modified on 20 जुलाई 2010, at 01:50

वर्तमान / संतोष मायामोहन

माँ
मेरे पास बैठी
बीन रही है धनिये के दाने
(तिनके, कंकड़)
कर रही है भावों-अभावों की गणना
सआत- सआत ।

माँ,
हर महीने लाती है
महीने भर का राशन
और हर महीने दोहराती है
यही कि यही बात ।

अनुवाद : मोहन आलोक