Last modified on 20 जुलाई 2010, at 19:31

जुलूस का जलसा / त्रिलोचन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 20 जुलाई 2010 का अवतरण ("जुलूस का जलसा / त्रिलोचन" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नागों का वह नंगा नाच और वह चिमटा
भाँजते हुए जाना, फिर तान कर डराना
जनसाधारण को, समूह जिन का था सिमटा
आसपास कौतूहल से, भयभीत कराना
और भगाना, प्रेतरूप से उन्हें छराना,
हौदा कसे हुए हाथी, सजे हुए घोड़े,
ऊँट, वेश रचना, पैंतरे, नवीन तराना,
वह विरागियों के जुलूस का जलसा, थोड़े
में इंद्र का अखाड़ा, कोई पी कर छोड़े
जिसे नहीं वह मद पल पल में छलक रहा था,
लोग भभर कर भागे, कितनों ने दम तोड़े
वेश बनाए निशाचरी छल ललक रहा था ।

लानत है, लानत, विराग को राग सुहाए,
साधू हो कर मांस मनुज का भरमुँह खाए ।