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वात्सल्य / विजय कुमार पंत

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तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या अद्भुत उकेरा, अंक में ले स्नेह, ममता मुदित दृग करते सवेरा

और आश्रय कौन जिसमें सहज और इतना स्वाभाविक किरन पुंजो में समाता हो घना कैसा अँधेरा.. तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या अद्भुत उकेरा, जन्म, जन्मा जननी से जीवन सुफल जिस प्रेम से है ढूंढते है देव किन्नर उस चरण रज में बसेरा तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या अद्भुत उकेरा, क्या महल अट्टालिकाये क्या भवन सुंदर अनोखे एक आंचल में तेरे सारा बसा संसार मेरा तूलिका ने रंग से वात्सल्य क्या अद्भुत उकेरा </poem>