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जयपुर / जय छांछा

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अभी
ठीक इस समय, मेरे आगे-पीछे
कोई साथ नहीं है
कोई सीमा नहीं है
कोई बाधा नहीं है
अवरोध नहीं है
सिर्फ मैं हूँ और
गुलाबी शहर है, जयपुर ।

सुरीले संगीत की धुन जैसे ही लग रहे हैं
यहाँ फैले हुए रंग
हवामहल की कारीगरी
जैसे रख दिया हो नीले थाल पर
अपने जन्मदिन का केक, और
जलमहल की बनावट
अपने ही, परिचितों के चेहरे जैसे लग रहे हैं
भीड़ में खोया हुआ हरेक चेहरा
मेरे चिरपरिचित स्थान पर
अपने को भुलाने का अभिनय करते हुए खडे हों जैसे
अनूठा प्रतीत हो रहा है मुझे, इस पल
जयपुर आगमन पर।

अपनी ही आँखों की पुतलियाँ लग रही हैं मुझे
जंतर-मंतर के यंत्र
अपने ही नाडीतंत्र जैसे ही लग रही हैं
मेरे दाएँ-बाएँ, आगे-पीछे फैली सड़कें
अपने ही घर का मूलद्वार जैसा ही लगा
गुलाबी शहर का ऐतिहासिक प्रवेश द्वार ।

चारों तरफ अपनत्व का ऐसा आभास पाकर
ख़ुशी का छोटा सा पहाड़ फूट पड़ा है मेरे हृ्दय में
और
कह रहा हूँ मैं आनंद के क्षण की कसम खाकर
मेरे मन में पहली बार गर्भधारण हुआ ख़ुशी का
जयपुर की प्यारी सी कोख में ।

मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला