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नदी / लीलाधर मंडलोई

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लाख कोशिश की
कि चल जाए
दवाइयों का जादू
सेवा से हो जाएं ठीक
नहीं हुआ चमत्‍कार लेकिन


मां की आंखें
उस गंगाजली पर थीं

जिसे भर लाई थीं वे
अपनी पिछली यात्रा में

धर्म में रहा हो उनका विश्‍वास
ऐसा देखा नहीं

वे बचे-खुचे दिनों में
रखे रहीं उस कुदाल को

जिससे तोड़ा उन्‍होंने कोयला
पच्‍चीस बरस तक काली अंधेरी खानों में

मां जल से उगी हैं
नदी को वे मां समझती थीं
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