Last modified on 26 जुलाई 2010, at 15:50

घरेलू मक्खी / लीलाधर मंडलोई

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 26 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=एक बहुत कोमल तान / लीलाधर …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जो न होता मेरे पास पिता का मेग्‍नीफाइंस ग्‍लास
कैसे देख पाता तुम्‍हारा सौंदर्य
और इतना पुलकित होता

कितने साफ-सुथरे और सुंदर तुम्‍हारे पंख
इन पर कितने आकर्षक पैटर्न बने हैं
ईश्‍वर की क्‍या अद्भुत रचना हैं तुम्‍हारे संयुक्‍त नेत्र

तुम्‍हारी संरचना में एक कलात्‍मक ज्‍यामिति है
अनूठी गति और लय में डूबी है तुम्‍हारी देह
कि उड़ती हो तो जैसे चमत्‍कार कोई
हवा में परिक्रमा करते हुए, नृत्‍य कितना मनोरम

इतनी अधिक चपलता के बावजूद
क्‍या खूब सचेत दृष्टि
कि मालूम तुम्‍हें उतरने की सटीक प्रविधियां
एक भी लैंडिग दुर्घटना इतिहास में दर्ज नहीं

तुम्‍हारी भिन-भिन से नफरत करने वाले हम
संचालित हैं अपने अज्ञान और अंधविश्‍वास से
हमारा सौंदर्यबोध भी इतना प्रदूषित
कि नहीं मान पाते उसके होने को
प्रकृति का एक खूबसूरत उपहार
देखो वह उड़ी और ये बैठ गई
अब उसका नर्मगुदाज स्‍पर्श है जो जन्‍म के पहले दिन के
बेटी के स्‍पर्श की तरह जिंदा है
00