Last modified on 27 जुलाई 2010, at 20:29

प्यार के ढाई आखर दे / मधुरिमा सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:29, 27 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्यार के ढाई आखर दे ।
चाहे पग - पग ठोकर दे ।

दिल के कोरे काग़ज़ पर,
तू भी तो कुछ लिखकर दे ।

तू दे तो ग़म ले लेंगे
लेकिन वो भी हँसकर दे ।

जह्र से भी इंकार नहीं,
अपना हाथ बढ़ाकर दे ।

दिल की ग़ज़ल अधूरी है,
एक शेर तू कहकर दे ।

जोगी की खुद्दारी है ,
भिक्षा घर पर आकर दे ।