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उधेड़बुन / अजित कुमार

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वह जड़ है या चेतन ?
उधेड़बुन में पड़ा था मैं
इस तथ्य से अपरिचित कि
इनके अलावा एक और भी है कोटि :
जीवित पत्थर !
फिर क्यों न मैं कहता,
धड़क रही बिटिया से-
राम, राम !
सालिगराम !