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झाड़ू / अजित कुमार

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हवाओं ने बुहारा
और
खुरों ने रौंदा
लहरों ने हटाया
जीवाणुओं ने खाया
ऋतुचक्रों ने मिटाया

इतिहास की झाड़ू से भला कौन बच पाया !
एक पँखुरी थी
पलक झपकते
चकनाचूर हुई ।