Last modified on 2 अगस्त 2010, at 12:04

बराबरी / अजित कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 2 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=घोंघे / अजित कुमार }} {{KKCatKavita}} <poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रेंग ले,
और तनिक रेंग ले,
ओ कीड़े !

खरगोशों की बराबरी
क्या ख़ाक तू करेगा !
चौकड़ी भरते
और
कुलाँचे लगाते
अब वे ओझल हो चुके हैं-
तेरी पहुँच से परे,
अपनी मंज़िल के आगे ।