Last modified on 3 अगस्त 2010, at 20:56

सच / विजय बहादुर सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:56, 3 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय बहादुर सिंह |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> सच सच की तर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सच सच की तरह था
झूठ भी था झूठ की तरह
फिर भी
मिलते-जुलते थे दोनों के चेहरे
समझौता था परस्पर
थी गहरी समझदारी
राह निकाला करते थे
एक दूसरे की मिलकर
सच की भी अपनी
दुकानदारियाँ थीं
मुनाफ़े थे झूठ के भी अपने
सच, सच की तरह था ।