Last modified on 4 अगस्त 2010, at 12:30

ओसकण और जीवन / अशोक लव

Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:30, 4 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=अशोक लव |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान }} <poem> म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मृदुल पंखुड़ियों पर
सोये ओसकण
भोर की शीतल हवा के गीत सुन
झूमने लगे

अरुणिम रश्मियों का प्रकाश पा
झिलमिला उठे

हौले से उतार उन्हें
हथेलियों पर
मन ने चाहा कर लेना बंदी उन्हें
मुठ्ठियों में

ओसकण कहाँ रह पाते हैं बंदी!
सूर्या की तपन का स्पर्श पाते ही
हो जाते हैं विलुप्त

जीवन!
तुम भी कहाँ रह पाते हो बंदी
मुठ्ठियों में?
कब फिसल जाते हो
पता ही नहीं चलता