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माहिये-१ / रविकांत अनमोल

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इक फूल है डाली पे ।
ऊपर वाले का,
एहसान है माली पे ।

दो फूल महकते हैं ।
दिल में यादों के,
सौ दीपक जलते हैं ।

फूलों से हवा खेले ।
अपनी मस्ती में
बंदों से ख़ुदा खेले ।

दिल झूम उठा मेरा ।
फूल के पर्दे में,
चेहरा जो दिखा तेरा ।

क्या खूब नज़ारे हैं ।
फूल हैं कलियाँ हैं,
चंदा है सितारे हैं ।