Last modified on 8 अगस्त 2010, at 16:19

तनहाइयाँ-4 / शाहिद अख़्तर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 8 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शाहिद अख़्तर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ख़ुदकलामी की भ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ख़ुदकलामी की भी
एक इंतहा होती है
मैंने हमेशा इससे परहेज किया
ख़ुदकलामी मैं क्‍यों करूँ भला
जब मेरी बात सुनने के लिए
मेरे पास मेरी तन्‍हाई है !