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हत्यारा / मुकेश मानस

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हत्यारा आता है
हत्या करता है
और चला जाता है
बेफ़िक्री के साथ
बड़ी शान के साथ

हत्यारा जाति नहीं पूछता
धर्म नहीं पूछता
पेशा नहीं पूछता
हालात नहीं पूछता
हत्यारा केवल हत्या करता है

हत्यारा कहीं भी और कभी भी
हत्या कर सकता है
मार सकता है जिसे चाहे
जब चाहे और जहाँ चाहे
हत्यारा सर्वव्यापी है
हत्यारा सर्वशक्तिमान है

हत्यारा कुछ नहीं सोचता
न हत्या करने से पहले
न हत्या करने के बाद
हत्या करना उसका पेशा है
और एक ईमानदार पेशेवर की तरह
हत्यारा अपना काम करता है

हत्यारा सबूतों की चिंता नहीं करता
बल्कि जानबूझकर छोड़ता है सबूत
और सबूत हैं
कि गायब हो जाते हैं खुद ब खुद

हत्यारा सभ्य जनों के बीच रहता है
जज के साथ चाय पीता है
और थानेदार के साथ दारू
सभ्य नागरिक, पुलिस, कचहरी
हत्यारे की शान में कसीदे पढ़ते हैं

हत्यारा राष्ट्र का सम्मानित नागरिक है
आलीशान इमारत में रहता है
बीएमडब्ल्यू से चलता है
इंटरनेट पर बातें करता है
और मोबाइल पर खिलखिलाता है

हत्यारा लोकप्रिय उदघाटनकर्त्ता है
वह बच्चों के स्कूलों
माता के जागरणो
और हथियारों के जख़ीरे का
उदघाटन करता है

हत्यारा कवितायें सुनता है
जनप्रिय नाटक देखता है
चित्र प्रदर्शनियों में जाता है
गोष्ठियों में भाषण देता है
कलाकारों को पुरस्कार बाँटता है

हत्यारा जनेऊ पहनता है
और अंग्रेज़ी बोलता है
वेदों के श्लोक उच्चारता है
और मार्क्स के उद्धरण देता है
ह्त्यारा देसी स्टाईल में आधुनिक है

हत्यारे का कोई दल नहीं
मगर सभी दल उसके हैं
वह सब दलों का होकर भी
किसी दल का नहीं
हत्यारा दलातीत है

हत्यारे के पास हैं
सारी अच्छी चीजें
मसलन सबसे अच्छी कारें
सबसे अच्छी किताबें
सबसे अच्छे हथियार
और सबसे सुंदर औरतों से
हत्यारे को है बहुत-बहुत प्यार

आज की दुनिया
हत्यारे की दुनिया है
जिसमें न अपराध बोध है
न सबूत, न कानून
और न लोगों की आवाज़
यही है हत्यारे की दुनिया का अंदाज़
2001