एक
कितनी पार्टियां, कितने झंडे
कितनी लाईनें, कितने अजंडे
राजनीति के कितने फंदे
कितने धंधे
सीधी-साधी जनता पर
चल रहे हैं कितने रंदे
दो
आते ही रहेंगे भेड़िये
चोला बदल बदलकर
दरअसल ऐसा ही है
वोट की राजनीति का चक्कर
तीन
जनवाद के शीशे में
दिखते हैं आजकल
कई-कई चेहरे
अवसरवाद के
2002