Last modified on 22 अगस्त 2010, at 19:40

आग / मुकेश मानस

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 22 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


आग रोटी पकाती है
आग हिंस्र पशुओं से बचाती है
आग अंधेरा भगाती है
आग रास्ता दिखाती है

तरह-तरह के कारनामे करती है आग।

एक आग
नौजवानों के बाजुओं में जलती है

नौजवानों के बाजुओं में
सच्चाईयों का लहू होता है

सच्चाईयों के लहू को
नदियों में नहीं डुबाया जा सकता है

कि सच्चाईयों के लहू में
नई दुनिया की नींव तपती है
                        
गोर्की का उपन्यास ‘माँ’ पढ़ते हुए, 1990, पुरानी नोटबुक से