कई रंग के फूल बने
काँटे खिल के
नई नस्ल के नये नमूने
बेदिल के
आड़ी-तिरछी
टेढ़ी चालें
पहने नई-नई सब खालें
परत-दर-परत हैं
पँखुरियों के छिलके
फूले नये-
नये मिजाज में
एक अकेले के समाज में
मेले में
अरघान मचाए हैं पिलके
भीतर-भीतर
ठनाठनी है
नोंक-झोंक है, तनातनी है
एक शाख पर
झूला करते
हिलमिल के
व्यर्थ लगें अब
फूल पुराने
हल्की ख़ुशबू के दीवाने
मन में लहका करते थे
हर महफिल के