Last modified on 28 अगस्त 2010, at 19:00

धूप / रामकृष्‍ण पांडेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:00, 28 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामक‍ृष्‍ण पांडेय |संग्रह =आवाज़ें / रामक‍ृष्‍…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1.

सफ़ेद बगुले-सी
उतरी है धूप
धरती पर बैठी है
पंख फैलाए

2.

सागर की लहरों से
छूटकर
रेत पर पड़ी है
झक-झक सफ़ेद सीपी-सी
धूप

3.

धूप को अपना अहसास नहीं है
जैसे चिड़ियों को अपने गीतों का नहीं है
जैसे पेड़ को अपने हरेपन का नहीं है
जैसे नदी को अपने प्रवाह का नहीं है
जैसे दिन को अपने उजाले का नहीं है

पर नहीं है अँधेरा अनमना
वह है बदस्तूर और भी घना