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रंग / सौमित्र सक्सेना

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माँ कैसी ख़ुश हो जाती है
जब मै उसे स्कूटर पे बिठा
बाज़ार ले जाया करता हूँ
मैं भी कैसा डूब जाता हूँ
उस पल को याद करके
जब अपनी पहली तनख्वाह लुटाने को
मैं माँ को ले जाऊंगा बाज़ार
माँ को बहुत कुछ चाहिए

डायनिंग टेबल का मेज़पोश
मेरे स्वेटर की ऊन
खिड़कियों के लिए परदे
डबलबेड का चद्दर
बहन के लिए क्लिप
मोनू के लिए जीन्स
पापा जाएँगे
सब दिलवाएँगे
पर माँ कहती है
पापा रास्ते भर झिक-झिक करेगें
हर सौदे में तीन-पाँच और
बाज़ार में हर मोड़ पर डाँट
इसलिए माँ को अब
मज़ा मेरे साथ चलने में ही आता है

हम माँ बेटे मस्ती से
चाट भी खाते हैं
और ये तै भी करते हैं कि
घर जा के किसी को
ख़बर नही होनी चाहिए

रास्ते भर मैं स्कूटर से
हाथ छोड़कर माँ को
छूकर टटोलता रहता हँ।
मुझे यह एहसास गलाता रहता है कि
एक आँचल आसमान से भी बड़ा
मेरी मुट्ठी में है
और एक हवा है जो
मेरे बालों को छूकर
वो आँचल हिला रही है