मैं
और तुम
अलग-अलग दिशाओं से
बढ़ते हुए आये
और
पथों के कटाव-बिंदु पर
मिल गये
हमारा यह मिलन
बढ़ते रहने की परिणिति थी
मैं
और तुम
फिर बढ़े
और उतनी ही दूर
होते चले गए
जितनी दूरियों को
पार कर आये थे.
मैं
और तुम
अलग-अलग दिशाओं से
बढ़ते हुए आये
और
पथों के कटाव-बिंदु पर
मिल गये
हमारा यह मिलन
बढ़ते रहने की परिणिति थी
मैं
और तुम
फिर बढ़े
और उतनी ही दूर
होते चले गए
जितनी दूरियों को
पार कर आये थे.