Last modified on 2 सितम्बर 2010, at 21:08

मुफ़लिस / विश्वनाथ प्रताप सिंह

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 2 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथ प्रताप सिंह }} <poem> मुफ़लिस से अब चोर बन र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुफ़लिस से
अब चोर बन रहा हूँ मैं
पर
इस भरे बाज़ार से
चुराऊँ क्या
यहाँ वही चीजें सजी हैं
जिन्हे लुटाकर
मैं मुफ़लिस बन चुका हूँ।