Last modified on 2 सितम्बर 2010, at 21:10

इश्तेहार / विश्वनाथ प्रताप सिंह

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 2 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वनाथ प्रताप सिंह }} {{KKCatKavita}} <poem> उसने उसकी गली न…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उसने उसकी गली नहीं छोड़ी
अब भी वहीं चिपका है
फटे इश्तेहार की तरह
अच्छा हुआ मैं पहले
निकल आया
नहीं तो मेरा भी वही हाल होता।