Last modified on 4 सितम्बर 2010, at 16:41

चुभन / ओम पुरोहित ‘कागद’

Ankita (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 4 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |संग्रह=आदमी नहीं है / ओम पुरो…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जूती में उभरी
एक ज्ञात कील
चुभ कर भी पांव को
उतना दर्द नहीं देती
जितना
एक अज्ञात अनचुभी कील
दिल को देती है।

दर्द तो दर्द है
मगर
पांव और दिल के बीच
जितना अंतर है।
ठीक उतना ही है
इनके दर्द का अंतर|
सवाल है
एक दर्द भरी चुभन
मिट जाती है
दूसरी चूभन की चूभन
चूभन बन सालती क्यों रहती है?


मैं
उस मंगतू मोची को जानता हूं
जो एक दिन
सफ़ेद पौशाक में उलझे
एक चरित्र द्वारा
अपने सामने
खिसकाई गई
टूटी हुई जूती के पैंदे में
कील ठोकते-ठोकते
ठिठक गया था
और उस चरित्र के चेहरे को ताक
जब कील ठुकने के बाद भी
ठोकता चला गया।

वह और ठोकता
इस बीच
उस चरित्र ने
अपनी जूती खींच
और पूछा
कितने पैसे?
मंगतू मोची ने
उसकी तरफ देखे बिना
पहले थूका
फिर अपनी दो अंगुलियां
कठपुतली की तरह
नचाते हुए संकेत किया
अगले ही क्षण
दो सिक्के
उस के सामने थे
उन्हे उठाते हुए उसने
फिर थूक दिया था
उसके बाद
वह अपनी मुसली को
देर तक ताकता रहा।

सवाल हैं
मंगतू मोची का यह दर्द
कोनसा दर्द था
उस चरित्र का दर्द
कौन सा दर्द था ?


मुझे भी दर्द है
उन दोनों के बीच
अज्ञात दर्द के रिश्तों का
तब फ़िर
मेरा यह दर्द
कौन सा दर्द है?