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नहाये झुटपुटे के प्रकाश में
रुपहले रंग के डन्डेलिओन
प्रस्फुरित करते हैं कुछ
हर मैदान में .
'अहा मैं फैला रहा हूँ पांख
अपने सर पर
खूब झबरीले .
'तुम भी ?क्या नहीं ?"
"अहा, मैं भी ?"
"हम क्यों बदल रहे हैं ?"
"लगता है मैं उड़ सकता हूँ !"
"क्या मैं उडूँ?"
उसी पल ,
एक स्वर गूंजता है स्वर्गलोक से ,-
"जब हवा बहती हो ,
हो जाना सवार उस पर !"
झबरीले डन्डेलिओन
कर रहे हैं प्रतीक्षा हवा की
धड़कते दिल से !
अनुवादक: मंजुला सक्सेना