Last modified on 7 सितम्बर 2010, at 17:38

प्रतीक्षा करो / मुकेश मानस

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 7 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


प्रतीक्षा करो
कभी-कभी प्रतीक्षा करना ही
होता है बेहतर

समय की गति में बदलता है सब कुछ
बदलता है समय खुद भी

समय भुला देता है
वो तमाम बातें
जिन्हें आज भुला पाना
लगता है मुश्किल

सुलझा देता है समय
सब गुत्थियाँ
जो आज दिखती हैं कठिन

जल्दबाज़ी करने से बिगड़ सकती हैं चीजें
हारो नहीं हिम्मत
धीरज धरो अभी
गुज़र जाने दो इस घड़ी को
कि समय नहीं रहता सदा एक सा।
2006