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हर सुबह
मैं देखती हूँ दर्पण में अपना चेहरा
कैसा विलक्षण है यह !
काले रेशमी बाल, छाये सर पर
दो आँखे,झरोखे आत्मा के
पलकें,खुलने -बंद होने को मुक्त
घनी भोंये आँखों का सटीक ढक्कन
ऊंची उठी नाक बीन्चों- बीन्च
मूंह जैसे पंखुड़ी गुलाब की
कान सजे दोनों ओर !
आँखे कहती हैं -यह दीखता है सुन्दर
नाक कहती है -यह गंध है अद्भुत
जीभ कहती है -यह स्वाद है बढ़िया
कान कहते हैं -यह आवाज़ है मधुर !
बाईबिल कहती है कि-
इश्वर ने बनाया मानव को
अपने जैसा .
कितनी बढ़िया रचना है
मेरा चेहरा !
अनुवादक: मंजुला सक्सेना