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गीत-1 / मुकेश मानस

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सागर झरने रोएँगे तो मेरे अँसुअन का क्या होगा
हम तुम ऐसे बिछ्ड़ेगे तो महामिलन का क्या होगा

मैंने मन के आँगन में, प्रेम सुमन खिलाए थे
तुमने अपनी ख़ुशबु से, जो आकर के महकाए थे
तुम प्रेम नदी ही सूख गईं तो, इस उपवन का क्या होगा? हम्….………………

मैंने अपने अंतर को, मंदिर एक बनाया था
तुमको उस मंदिर में एक देवी सा सजाया था
जो तुमको अर्पित करना था, अब उस जीवन का क्या होगा? हम ….……।
1988