Last modified on 8 सितम्बर 2010, at 22:29

रह गई माँ क्षीण क्षिप्रा-सी / नईम

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 8 सितम्बर 2010 का अवतरण (रह गई माँ क्षीण क्षिप्रा-सी का नाम बदलकर रह गई माँ क्षीण क्षिप्रा-सी / नईम कर दिया गया है)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रह गई माँ क्षीण क्षिप्रा-सी,
मगर अब भी पिता हैं नर्मदा के घाट।

याद आती है मुझे शीतल गझिन अमराई,
केरियाँ खाती बहिन, शाखें बटोरे भाई;
          सिर झुकाए बालियों-सी माँ-
          मगर तटबंध-से ऊँचे पिता के ठाट।

आस्था जो नहा-धोकर ईद पर पढ़ती नमाज,
माटियाँ खाते हुए, जो बीनती रहती अनाज;
          हिंदवी-सी ये प्रकृति सी माँ-
          मगर अब भी पिता गोया पछाँही जाट।

गंध सौंधी बाटियों की, दूध की हल्की उजास,
पुरजनों से परिजनों तक संधि याकि समास;
          पिता सायेदार वह वटवृक्ष-
          नीचे बिछी माँ
          जैसे निखरनी खाट।