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आँसू / आलोक शर्मा

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आँसू मेरे जीवन का साथी
या मदमस्त बहार का स्वामी
संताप-वैराग्य, चिंता या हर्ष
प्लावन कर देते नयन-श्रंखला का गर्व

मस्तिष्क के पीड़ा का द्योतक
नयन बंधु से विरक्त हुए
जैसे रिमझिम सावन के बूंदों से
कल-कल बहते कहाँ चले

जीवन के करुना का स्वर
मेघ बन जब छाता है
वीरों के नेत्रों पर भी
तुम्हारा ही प्रभुत्व छाता है

कौन धनुर्धर शेष रहा
जो तुम्हें रोक, मुस्कुराया है
दीप्ति, अदीप्ति का भान कहाँ
जो तुम्हें समज में आया है

आकाश की बूँद गिरकर
जब सीपी से मिल जाती है
मोती बनकर जब निकलती
तो तुम्हारा ही आभास कराती है

करुणा के वेदी पर जो व्यक्ति
निरंतर निमग्न रहेगा
बिन बुलाए नेत्रों पर उसके
तुम्हारा ही दर्पण रहेगा

किन्तु भक्ति के सागर में संलग्न
जब किसी भक्त के नेत्र में आ जाते हो
अपना मान बड़ा देते और
जीवन को सफल बनाते हो

जो तुम्हें बस में करके
जीवन को जी पाता है
वह स्थितप्रज्ञ होकर
निर्वाण में समा जाता है