मन में नूतन बल सँवारता
जीवन के संशय भय हरता,
वंदनीय बापू वह आया
कोटि कोटि चरणों को धरता;
धरणी मग होता है डगमग
जब चलता यह धीर तपस्वी,
गगन मगन होकर गाता है
गाता जो भी राग मनस्वी;
पग पर पग धर-धर चलते हैं
कोटि कोटि योधा सेनानी,
विनत माथ, उन्नत मस्तक ले,
कर निःशस्त्र आत्म-अभिमानी!
युग-युग का घनतम फटता है
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