बच्चा-ए-शाहीं<ref>बाज़(पक्षी)के बच्चे से</ref> से कहता था उक़ाबे-साल -ख़ुर्द<ref>बूढ़ा उक़ाब</ref>
ऐ तिरे शहपर<ref>पंख</ref> पे आसाँ रिफ़अते- चर्ख़े-बरीं<ref>आकाश की ऊँचाई</ref>
है शबाब<ref>यौवन</ref>अपने लहू की आग मे जलने का काम
सख़्त-कोशी<ref>कठोर परिश्रम</ref>से है तल्ख़े-ज़िन्दगानी<ref>जीवन का कड़वापन</ref>अंग-बीं<ref>शहद, मधु</ref>
जो कबूतर पर झपटने मे मज़ा है ऐ पिसर
वो मज़ा शायद कबूतर के लहू मे भी नहीं
शब्दार्थ
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