Last modified on 17 सितम्बर 2010, at 20:14

मित्रता / अरुण देव

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:14, 17 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरुण देव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> देह पर एक जैसी शर्ट …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


देह पर एक जैसी शर्ट
एक उसके पास

चाहे उड़ जाए रंग
घिसकर कमजोर पड़ जाए धागा
फट जाए जेब
और दिखे कपड़े के पीछे का बदरंग चेहरा
पर जिद कि आत्मा की उसी रौशनी में झिलमिलाए मन

बढ़ा कर छू लें
नदियोँ.पहाड़ों और रेगिस्तानों के पार
उसके जीवन के वे हिस्से
जिसमें सघनता से रहते हैं दो प्राण

ईर्ष्या मोह में डूबे दो अलग संसार को
जोड़ने वाला
हिलता हुआ यह पुल.