बाबा! तुम सोचते होंगे
क्यों पैदा हुआ ऐसा पुत्र ?
जो भाग गया
तुम्हें छोड़कर
ग़रीबी में जीते
भूख से लड़ते
चिलचिलाती धूप में
नंगे पांव, नंगे बदन
खेतों में बेगारी करते
कभी कोसते होंगे खुद को
कि नहीं दे सका
अपनी संतान को
दो जून सुख की रोटी
माँ भी कोसती होंगी खुद को
काहे जना मैंने ऐसा कपूत
सोचा था हाथ बँटाएगा
बुढ़ापे में सुख दिखलाएगा
क्या पता था
कि घर से भाग जाएगा?
पर बाबा! मैं भागा
क्योंकि मुझे मंज़ूर नहीं
कोई करे मेरा अपमान
अछूत कहकर
माँ ढोए सर पर मैला
घर-घर जाकर
बिना वज़ह ही
मास्टर जी बरसाएँ मुझ पर डंडे
और दें मुझे ग़ाली मुर्गा बनाकर
मैं भागा नहीं भगाया गया हूँ
गाँव में इतना सताया गया हूँ ।