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एक लड़ाई / पूनम तुषामड़

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मैंने छेड़ी है लड़ाई
उन तमाम असमर्थताओ के ख़िलाफ़
जो मुझसे मेरे हिस्से का
सुख छीन कर ले जाती हैं
और बदले में मुँह चिढ़ाती हैं

मैं बार-बार बढ़ती हूँ
सम्पूर्ण शक्ति और
मनोबल लेकर
याद करती हूँ
कि-पहले भी किया है
किसी ने संघर्ष
अकेले ही
इस पूरी सामाजिक
सत्ता के खिलाफ

किया है स्वाहः
मनु की अमानुषिक कृति को

और प्रज्जवलित की थी
हमारी अंधियारी
गलीज़ ज़िन्दगी में
उम्मीद की मशाल