Last modified on 23 सितम्बर 2010, at 15:18

त्रिवेणी 1 / गुलज़ार

Abha Khetarpal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 23 सितम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आओ, सारे पहन लें आईने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा

रूह ? अपनी भी किसने देखी है!


क्या पता कब, कहाँ से मारेगी
बस कि मैं ज़िन्दगी से डरता हूँ

मौत का क्या है, एक बार मारेगी

 
उठते हुए जाते हुए पंछी ने बस इतना ही देखा
देर तक हाथ हिलाती रही वो शाख़ फ़िज़ा में

अलविदा कहने को, या पास बुलाने के लिए?