नीले-नीले से शब के गुम्बद में तानपुरा मिला रहा है कोई एक शफ्फाफ़ कांह का दरिया जब खनक जाता है किनारों से देर तक गूँजता है कानो में पलकें झपका के देखती हैं शमएं और फ़ानूस गुनगुनाते हैं मैंने मुन्द्रों की तरह कानो में तेरी आवाज़ पेहें रक्खी है