मैंने देखा है
बचपन को रंगो से
खेलते हुए।
और रंगो का दर्द
जीवन में झेलते हुए
क्यूंकि -
ये रंग सतरंगी सपनों के नहीं हैं
और न ही इन्द्रधनुषी।
ये रंग है दुःख के ग्लानि के
घृणा और अपमान के
उनके जीवन में फैले
जातीय तिरस्कार के।
मैंने देखा है
कैसे किसी सफाईकर्मचारी का बेटा
स्कूल से भाग आता हैं।
घर में झूठ बोलता है,
सच को छिपाता है
परन्तु....
उसकी आंखों में
मैंने देखा है
नरक में जीते हुए
कैसे कोई बच्चा
पीला पड़ जाता हैं
और एक दिन अचानक
दम तोड़ जाता है
मैंने देखा है....
कैसे किसी गरीब का बेटा
शराबी, जुआरी बन जाता है
क्योंकि विरासत में अपने बड़ों से
यहीं जीवन पाता है
‘जाति’ का डर
उसे इस कदर सताता है
कि एक दिन
वह बालक स्कूल के
नाम से कतराता है।
और इस तरह न जाने
कितने बचपन
नष्ट हो जाते हैं
उनके जीवन के
स्वाभविक रंग
मिट जाते हैं।