जिस दिन मेरे शब्द
धरती थे ...
मैं दोस्त था गेहूँ की बालियों का ।
जिस दिन मेरे शब्द
क्रोध थे
मैं दोस्त था बेड़ियों का ।
जिस दिन मेरे शब्द
पत्थर थे
मैं दोस्त था धाराओं का,
जिस दिन मेरे शब्द
एक क्रान्ति थे
मैं दोस्त था भूकम्पों का ।
जिस दिन मेरे शब्द
कड़वे सेब थे
मैं दोस्त था एक आशावादी का ।
लेकिन जिस दिन मेरे शब्द
शहद में बदले ...
मधुमक्खियों ने ढँक लिया
मेरे होठों को! ...
अनुवाद : अशोक पाण्डे