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धाम निराला / राजेन्द्र शाह

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यह कोई धाम निराला
जहाँ मैं देखूँ उज्ज्वल अँधियारा ।
यहाँ यह चेतनामय दृष्टि मेरी
आश्चर्य से हो रही अचेत
यहाँ शब्द नहीं, सुर नहीं
परंतु कानों में संकेत ।

मैं कब रहूँ नींद में, कब जागूँ
कुछ ना जानूँ ।

जैसे कोई महासागर
और तरंगहीन तरंग
किसी चेहरे की कोई झाँकी नहीं,
और तब भी मैं एकाकी नहीं,
मेरे हाथों में पतवार नहीं
और तब भी मैं नाव चलाऊँ ।
                            

मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति