Last modified on 29 सितम्बर 2010, at 01:13

चूज़े / अब्दुल बिस्मिल्लाह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 29 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अब्दुल बिस्मिल्लाह |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> चूज़े दे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
अपने दरबे की सीमा में
बैठती है, खड़ी होती है
और उन्हें खेलने देती है

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
कूड़े में, गोबर में
और राख में उनके लिए
महीन दाने तलाशती है

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
बिल्ली के आक्रमण से
उन्हें आगाह करती है

चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
सिल पर, चौके पर
और दहलीज़ पर
चोंच तेज करने का
सलीक़ा बताती है

और चूज़े देखते हैं
कि किस तरह उनकी माँ
उन्हें खूंखार दुनिया सौंपकर
दावत बन जाती है

चूज़े देखते हैं
कि उनकी चोंच
उन्हें शोरबा बनने से
बचा सकती है या नहीं

चूज़े
गमले की हरी पत्ती पर
अपनी चोंच आज़माते हैं

पत्ती टूट जाती है

चूज़े सोचते हैं
दुनिया क्या
इस पत्ती से ज्यादा सख्त होगी ?