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चाभियां / लीलाधर मंडलोई

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पिता ने मुझे विरासत में
कई चाभियां दी

मैं एक-एक कर खोलता रहा दरवाजे

दुनिया का कोई दरवाजा
मेरी चाभी से नहीं खुला

चाभियों का रहस्‍य
चला गया पिता के साथ

उनकी विरासत का मूल्‍य
बाल सफेद होते-होते समझ आया