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चिड़िया / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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जितनी रंगीन चिड़ियाँ थीं मुझमें
सब उड़ गईं
जाने किन तरुओं गिरि-शिखरों से
जुड़ गईं
सूना नहीं हूँ मैं फिर भी ओ चितेरे,
राग बन कर के
सच मुझ में ही निचुड़ गईं |