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चमक / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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चमक है पसीने की
कसी हुई मांसपेशियों पर,
चमक है ख़्वाबों की
तनी हुई भृकुटी पर ।
चमक सुर्ख, तपे लोहे की घन में,
चमक बहते नाले की
शांत सोये वन में ।
उसी चमक के सहारे मैं जिऊँगा
हर हादसे में आए जख्मों को सिऊँगा |