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आना तुम / कुमार विश्वास

रचनाकार: कुमार विश्वास


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आना तुम मेरे घर

अधरों पर हास लिये

तन-मन की धरती पर

झर-झर-झर-झर-झरना

साँसों मे प्रश्नों का आकुल आकाश लिये


तुमको पथ में कुछ मर्यादाएँ रोकेंगी

जानी-अनजानी सौ बाधाएँ रोकेंगी

लेकिन तुम चन्दन सी, सुरभित कस्तूरी सी

पावस की रिमझिम सी, मादक मजबूरी सी

सारी बाधाएँ तज, बल खाती नदिया बन

मेरे तट आना

एक भीगा उल्लास लिये

आना तुम मेरे घर

अधरों पर हास लिये


जब तुम आऒगी तो घर आँगन नाचेगा

अनुबन्धित तन होगा लेकिन मन नाचेगा

माँ के आशीषों-सी, भाभी की बिंदिया-सी

बापू के चरणों-सी, बहना की निंदिया-सी

कोमल-कोमल, श्यामल-श्यामल,अरूणिम-अरुणिम

पायल की ध्वनियों में

गुंजित मधुमास लिये

आना तुम मेरे घर

अधरों पर हास लिये

कोई दीवाना कहता है (२००७) मे प्रकाशित