Last modified on 15 अक्टूबर 2010, at 11:15

गुमसुम तकै छी / बुद्धिनाथ मिश्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:15, 15 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |संग्रह= }} Category: मैथिली भाषा [[Category…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राति-दिन थर-थर कँपइए पानि
हम गुमसुम तकै छी ।
आइना केर वैह पुरना बानि
हम गुमसुम तकै छी ।

भीत पर उखरल अहाँ केर नाम
कहियो इजोरिया छल
आइ सभ आखर रहल अछि कानि
हम गुमसुम तकै छी ।

हम प्रतीक्षा मे छलहुँ
क्यो रंग घोरत कासवन मे
इन्द्रधनु टूटत कत' के जानि
हम गुमसुम तकै छी ।

दीप तर पसरल अन्हारक साँप
पलथी मारने अछि
आँखि मे फेर डबडबायल ग्लानि
हम गुमसुम तकै छी ।

यात्रा तँ यात्रा थिक
ल'ग की थिक, दूर की थिक
किंतु सूतब एना तौनी तानि
हम गुमसुम तकै छी ।